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जहां आग की लपटें पेड़-पौधों को नहीं छूती, बंगाल टाइगर का नया ठिकाना

चंपावत जिले में लोहाघाट से नौ किलोमीटर दूर स्थित मायावती आश्रम का पंचायत वन सेवा और समर्पण की मिसाल है। 152 हेक्टेयर में फैला यह जंगल, जहां मानवीय हस्तक्षेप और आग की लपटें नहीं पहुंचती, उत्तराखंड का एक आदर्श वन बन चुका है। यहां आने वाले हजारों श्रद्धालु और पर्यटक आध्यात्मिक शांति और प्राकृतिक विविधता से प्रेरणा ग्रहण करते हैं।

जलवायु संकट और जंगल की सुरक्षा

जलवायु परिवर्तन से तापवृद्धि के कारण वन्यजीव और वन प्रभावित हो रहे हैं। 60 प्रतिशत वन क्षेत्र वाले उत्तराखंड में जंगल की आग की घटनाएं बढ़ रही हैं। चंपावत में भी फायर सीजन (15 फरवरी से) के दौरान हर जंगल आग की चपेट में आता है, पर मायावती का यह जंगल दशकों से सुरक्षित है। आश्रम के कर्मचारी रात-दिन मेहनत कर आसपास की आग को यहां तक पहुंचने से रोकते हैं।

स्वामी विवेकानंद को समर्पित वन

125 वर्ष पहले स्वामी विवेकानंद के अंग्रेज शिष्य सेवियर दंपती द्वारा स्थापित इस जंगल में बांज, बुरांश, काफल, उतीश, रियांज और खरसू जैसे पेड़ों की बहुलता है। सघन वनराशि इतनी घनी है कि सूर्य की किरणें भी छनकर जमीन तक पहुंचती हैं। हर वृक्ष स्वामी विवेकानंद को समर्पित है, और मानवीय हस्तक्षेप से मुक्त यह क्षेत्र मॉडल फारेस्ट के रूप में पहचाना जाता है।

बंगाल टाइगर का नया घर

इस जंगल की अनुकूल परिस्थितियों ने बंगाल टाइगर को आकर्षित किया है। अब यह जंगल टाइगर का ठिकाना बन गया है, और अक्सर जंगल से बाहर उनकी मौजूदगी देखी जाती है। जैव विविधता से समृद्ध यह क्षेत्र देश के लिए प्रेरणास्रोत है।

जल संरक्षण का योगदान

मौसम में बदलाव से आसपास के गांवों के जलस्रोत सूख गए हैं, लेकिन मायावती जंगल की गहरी जड़ों वाले वृक्षों से निकलने वाली जलधारा दर्जनभर गांवों की प्यास बुझाती है। लोहाघाट से सटे बिशंग क्षेत्र के लिए पेयजल योजना भी इसी स्रोत पर आधारित है।

संतों की देखरेख में संरक्षण

1900 में आश्रम की स्थापना के बाद से संतों ने जंगल की सुरक्षा और प्रबंधन का जिम्मा संभाला। सूखे पेड़ों की जगह नए पौधे लगाए जाते हैं, अवैध कटाई पर नजर रखी जाती है, और सूखी पत्तियों-घास का निस्तारण हर साल किया जाता है ताकि वनाग्नि से बचा जा सके।

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